54th Day :: Don't Judge the Book by it's Cover
हमारा देश एक महान देश है जहाँ सैकड़ों महापुरुषों का जन्म हुआ है। इनमें से कुछ को उचित मान-सम्मान मिला तो कुछ को बस यूँ ही भुला दिया गया। हम विभिन्न पार्टियों द्वारा समय-समय पर 'उनके' महापुरुषों का गुणगान करते हुए देख सकते हैं। जो कि कुछ और नहीं बस उनके भ्रष्ट चेहरों पर एक मुखौटा लगाने की कवायद भर होती है। ऐसा नहीं है कि इन मुखौटों के पीछे के सभी चेहरे भ्रष्ट होते हैं ,इनमे से कुछ वास्तव में अच्छे भी होते हैं लेकिन अधिकतर चेहरे भ्रष्ट ही होते हैं।
वास्तव में गलती हमारी ही है,हम मुखौटों के आदी हो चुके हैं। पहले अंग्रेज़ों ने डंडा दिखाकर हमें लूटा फिर गाँधी जी का झंडा दिखाकर 50 -60 वर्षों तक हमें बेवक़ूफ़ बनाया गया और अब लोहिया , विवेकानंद , अम्बेडकर आदि के जैसे भूले-बिसरे महापुरुषों का मुखौटा लगाकर ये पार्टियाँ हमें बेवकूफ बनाना चाहती हैं, विकास और बिजली-पानी की बात कोई नहीं करता क्योंकि इसमें ज्यादा मेहनत लगती है ।
आज राजनैतिक द्वेष की हालत ऐसी है कि राजीव-इंदिरा की फोटो डाक-टिकटों से हटाकर दूसरे महापुरुषों की फोटो लगाई जा रही है। मैं पूछता हूँ कि क्या इन महापुरुषों की फोटो राजीव-इंदिरा के साथ नहीं लगाई जा सकती थी।
ये पार्टियाँ ऐसा दिखावा करती हैं जैसे कुछ particular महापुरुषों पर सिर्फ उन्हीं का copyright है, अन्य का उनपर कोई अधिकार नहीं। जबकि मैं मानता हूँ कि कोई महापुरुष चाहे किसी भी पार्टी से जुड़ा हो, उसपर पूरे इंडिया का हक़ है।
हम आखिर मुखौटे देखकर पूरी पार्टी को सही या गलत क्यों समझने लगते हैं। इस तरह हम Cover देखकर पूरी किताब का अनुमान लगा लेते हैं कि वो सही है या गलत। जिसका फ़ायदा ये पार्टियां उठाती हैं। इसलिए हमें पार्टियों की विकास नीति और उसे चलाने वाले वर्तमान राजनेताओं के गुणों के आधार पर पार्टियों का चुनाव करना चाहिए न कि महापुरुषों के मुखौटे के आधार पर।
हम आखिर चेहरे देखते ही क्यों हैं, केवल आदर्शों को क्यों नहीं अपनाते। बंद घडी भी दिन भर में कम से कम एक बार सही वक़्त जरूर बताती है। इसलिए बुरी से बुरी छवि वाला व्यक्ति भी हमें कम से कम एक अच्छी सीख जरूर दे सकता है। vice-versa अच्छे से अच्छे छवि वाला व्यक्ति भी अपने जीवन में कम से कम एक गलती जरूर करता है। इसलिए हमें दूसरों के चेहरों को नहीं देखना चाहिए बल्कि उनके आदर्शों को अपनाना चाहिए। मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि हमें दूसरों के आदर्शो को भी जाँच -परखकर अपनाना चाहिए कि वो हमारे जीवन में उपयोगी है या नहीं, जैसे हम बाजार से सामान खरीदते हुए करते हैं।
वास्तव में गलती हमारी ही है,हम मुखौटों के आदी हो चुके हैं। पहले अंग्रेज़ों ने डंडा दिखाकर हमें लूटा फिर गाँधी जी का झंडा दिखाकर 50 -60 वर्षों तक हमें बेवक़ूफ़ बनाया गया और अब लोहिया , विवेकानंद , अम्बेडकर आदि के जैसे भूले-बिसरे महापुरुषों का मुखौटा लगाकर ये पार्टियाँ हमें बेवकूफ बनाना चाहती हैं, विकास और बिजली-पानी की बात कोई नहीं करता क्योंकि इसमें ज्यादा मेहनत लगती है ।
आज राजनैतिक द्वेष की हालत ऐसी है कि राजीव-इंदिरा की फोटो डाक-टिकटों से हटाकर दूसरे महापुरुषों की फोटो लगाई जा रही है। मैं पूछता हूँ कि क्या इन महापुरुषों की फोटो राजीव-इंदिरा के साथ नहीं लगाई जा सकती थी।
ये पार्टियाँ ऐसा दिखावा करती हैं जैसे कुछ particular महापुरुषों पर सिर्फ उन्हीं का copyright है, अन्य का उनपर कोई अधिकार नहीं। जबकि मैं मानता हूँ कि कोई महापुरुष चाहे किसी भी पार्टी से जुड़ा हो, उसपर पूरे इंडिया का हक़ है।
हम आखिर मुखौटे देखकर पूरी पार्टी को सही या गलत क्यों समझने लगते हैं। इस तरह हम Cover देखकर पूरी किताब का अनुमान लगा लेते हैं कि वो सही है या गलत। जिसका फ़ायदा ये पार्टियां उठाती हैं। इसलिए हमें पार्टियों की विकास नीति और उसे चलाने वाले वर्तमान राजनेताओं के गुणों के आधार पर पार्टियों का चुनाव करना चाहिए न कि महापुरुषों के मुखौटे के आधार पर।
हम आखिर चेहरे देखते ही क्यों हैं, केवल आदर्शों को क्यों नहीं अपनाते। बंद घडी भी दिन भर में कम से कम एक बार सही वक़्त जरूर बताती है। इसलिए बुरी से बुरी छवि वाला व्यक्ति भी हमें कम से कम एक अच्छी सीख जरूर दे सकता है। vice-versa अच्छे से अच्छे छवि वाला व्यक्ति भी अपने जीवन में कम से कम एक गलती जरूर करता है। इसलिए हमें दूसरों के चेहरों को नहीं देखना चाहिए बल्कि उनके आदर्शों को अपनाना चाहिए। मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि हमें दूसरों के आदर्शो को भी जाँच -परखकर अपनाना चाहिए कि वो हमारे जीवन में उपयोगी है या नहीं, जैसे हम बाजार से सामान खरीदते हुए करते हैं।
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