Kuch yaad unhe bhi kar lo jo laut ke ghar naa aaye...
पाक द्वारा फिर दो भारतीय सैनिकों की बर्बरता के साथ हत्या कर दी गयी। पाक की यह हरकत नयी नहीं है, पहले भी वह भारत के शांति-बहाली के प्रयासों को कमजोरी समझकर कारगिल युद्ध छेड़ चुका है लेकिन भारत उसकी इस हरकत का मुंहतोड़ जवाब देने के बजाय मामले को विश्व समुदाय के सामने रखने की बात कर रहा है । क्या कारगिल-युद्ध के बाद भी विश्व को कोई और सबूत देने की ज़रुरत है जिससे पाकिस्तान की नापाक सोच ज़ाहिर हो सके ? और आखिर कारगिल युद्ध के समय अन्तर्राष्ट्रीय नियम तोड़ने पर थोड़े समय के
आर्थिक प्रतिबन्ध के अलावा पाक के खिलाफ क्या कोई प्रभावी कदम विश्व-समुदाय
ने उठाया ? फिर हम विश्व-समुदाय की चिन्ता क्यों करते हैं? हम क्यों
अमेरिका की तरह निर्णायक कार्रवाई क्यों नहीं करते? बेशक युद्ध से अशान्ति
फैलती हो मगर कभी-2 ये शान्ति पाने के लिए भी जरूरी हो जाता है।
कायराना ही सही पर वास्तव में ये पाक की युद्ध की रणनीति रही है कि एक ओर तो वो हिना रब्बानी जैसे लोगों को विदेश-मंत्री के तौर पर भारत भेजता है जो यह साबित की कोशिश करते हैं कि वो भारत के साथ शांति चाहते हैं तो दूसरी तरफ वो हमला करके भारतीय सैनिकों का सर कलम करता है क्योंकि वो जानता है कि ऐसे मौके पर भारत जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा।इसी कायराना हरकत को वो गुरिल्ला युद्ध का नाम देता है , जिसके तहत वो हमेशा ऐसे समय हमला करता है जब भारत का गुस्सा ठंडा होता है।
अगर हिना रब्बानी जैसे नेता पाकिस्तान के असली चेहरे के मुखौटे नहीं हैं तो भी इतना तो साफ़ हो जाता है कि इन नेताओं का पाकिस्तानी सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है। फिर शान्ति-वार्ता के नाम पर ये मुफ्त में प्लेटें साफ़ करने भारत क्यों आते हैं?
भारत को अब पाकिस्तान से दो-टूक कह देना चाहिए कि शान्ति-वार्ता तभी होगी जब ये नेता पाक सेना पर नियंत्रण का प्रमाण लेकर आयेंगे अन्यथा पाक भारत की ओर से निर्णायक कार्रवाई के लिए तैयार रहे।
पाक की 'फितरत' को देखते हुए भारत को अब ये समझ लेना चाहिए कि पाक शान्ति-वार्ता के लिए वास्तव में तभी तैयार होगा जब उसे यह अहसास हो कि भारत के खिलाफ़ उसका एक कदम उसके लिए आत्मघाती साबित होगा और उसका एक गलत कदम उसकी ताबूत की आखिरी कील साबित होगा।
पाक के न सुधरने के कुछ कारण हैं-
निर्णायक कार्रवाई जरूरी होने की स्थिति में हमें चीन का भी सामना करना पड़ सकता है क्योंकि चीन हमेशा परोक्ष रूप से पाक का ही साथ देता रहा है। इसलिए ऐसी स्थिति में आसियान देशों के साथ-साथ अमेरिका के साथ हमें अपने सम्बन्ध मज़बूत करके एक गुट बनाने की जरूरत पड़ेगी। आसियान और दुसरे पड़ोसी देश भारत के स्वाभाविक मित्र हैं क्योंकि ये सभी चीन या पाक या दोनों से परेशान हैं और अब अपना विकास चाहते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति अमेरिका की है।
अमेरिका के साथ सम्बन्ध सुधारने की कुछ और वजहें हैं-
कायराना ही सही पर वास्तव में ये पाक की युद्ध की रणनीति रही है कि एक ओर तो वो हिना रब्बानी जैसे लोगों को विदेश-मंत्री के तौर पर भारत भेजता है जो यह साबित की कोशिश करते हैं कि वो भारत के साथ शांति चाहते हैं तो दूसरी तरफ वो हमला करके भारतीय सैनिकों का सर कलम करता है क्योंकि वो जानता है कि ऐसे मौके पर भारत जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा।इसी कायराना हरकत को वो गुरिल्ला युद्ध का नाम देता है , जिसके तहत वो हमेशा ऐसे समय हमला करता है जब भारत का गुस्सा ठंडा होता है।
अगर हिना रब्बानी जैसे नेता पाकिस्तान के असली चेहरे के मुखौटे नहीं हैं तो भी इतना तो साफ़ हो जाता है कि इन नेताओं का पाकिस्तानी सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है। फिर शान्ति-वार्ता के नाम पर ये मुफ्त में प्लेटें साफ़ करने भारत क्यों आते हैं?
भारत को अब पाकिस्तान से दो-टूक कह देना चाहिए कि शान्ति-वार्ता तभी होगी जब ये नेता पाक सेना पर नियंत्रण का प्रमाण लेकर आयेंगे अन्यथा पाक भारत की ओर से निर्णायक कार्रवाई के लिए तैयार रहे।
पाक की 'फितरत' को देखते हुए भारत को अब ये समझ लेना चाहिए कि पाक शान्ति-वार्ता के लिए वास्तव में तभी तैयार होगा जब उसे यह अहसास हो कि भारत के खिलाफ़ उसका एक कदम उसके लिए आत्मघाती साबित होगा और उसका एक गलत कदम उसकी ताबूत की आखिरी कील साबित होगा।
पाक के न सुधरने के कुछ कारण हैं-
- पाक कश्मीर मुद्दा इसीलिए उठाता है क्योंकि इस मुद्दे की आड़ में वह नौजवानों को भड़का कर आतंकवादी संगठनों में शामिल करता है। इसलिए अगर कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए कश्मीरी लोगों की इच्छा के विरुद्ध पूरा कश्मीर पाक को सौंप दें तो भी वो शांति स्थापित नहीं करेगा और अगले ही दिन यही मुद्दा पंजाब और बंगाल के लिए उठा देगा ।
- दूसरी वजह यह है कि वो जानता है कि जब तक आतंकवाद है तभी तक उसे आतंकवाद से लड़ने के नाम पर विदेशों से 'आर्थिक मदद' मिलेगा।
निर्णायक कार्रवाई जरूरी होने की स्थिति में हमें चीन का भी सामना करना पड़ सकता है क्योंकि चीन हमेशा परोक्ष रूप से पाक का ही साथ देता रहा है। इसलिए ऐसी स्थिति में आसियान देशों के साथ-साथ अमेरिका के साथ हमें अपने सम्बन्ध मज़बूत करके एक गुट बनाने की जरूरत पड़ेगी। आसियान और दुसरे पड़ोसी देश भारत के स्वाभाविक मित्र हैं क्योंकि ये सभी चीन या पाक या दोनों से परेशान हैं और अब अपना विकास चाहते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति अमेरिका की है।
अमेरिका के साथ सम्बन्ध सुधारने की कुछ और वजहें हैं-
- अमेरिका चीन के खिलाफ एशिया में शक्ति-सन्तुलन स्थापित कर सकता है जो कि उसका सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी है।
- अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई के नाम पर पाक की blackmailing से परेशान हो चुका है और यह समझ चुका है कि 'आर्थिक मदद' देने से पाक आतंकवाद को समाप्त नहीं करने वाला।
- भारत-अमेरिका के सम्बन्धों का सीधा असर अनिवासी भारतीयों पर पड़ता है।
- भले ही अमेरिका दुनिया में अपनी दादागिरी के लिए जाना जाता हो मगर एक सशक्त लोकतान्त्रिक राष्ट्र है और पूर्व में गुलामी भी झेल चुका है इसलिए भारत की समस्या को बेहतर समझ सकता है।
- आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वह पहले से ही भारत के साथ है।
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