31st Day :: & now mixing in thoughts
हम लोग अभी तक audio-mixing , video-mixing और खाने-पीने की चीजों में विभिन्न प्रकार की मिलावट से ही दो-चार होते रहे हैं। मगर दूसरी technologies की तरह mixing की technology भी उन्नति कर रही है। मैं आजकल एक नए तरह की मिलावट से रूबरू हुआ, यह थी हमारे महापुरुषों के विचारों में मिलावट!
जी हाँ आपने बिलकुल ठीक सुना , आजकल news में भड़काऊपन और महापुरुषों के विचारों में confusive & abeted thoughts की मिलावट चल रही है।
हमारे पास का mixer-grinder फलों और दूध को या फिर अलग-अलग चीजों को पीसकर मसाला बनाने के ही काम आती है, मगर हमारे नीति-नियन्ताओं के पास ऐसा mixer होता है कि ये किसी भी चीज में किसी भी चीज को इस तरह मिला सकता है कि बड़े से बड़ा जाँचकर्ता भी इस मिलावट को न पकड़ सके।
वैसे तो ये सब कई दिनों से चल रहा है, मगर मैं आज की ताज़ा खबर के बारे में ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा-
अमर-उजाला के पेज-13 पर स्वामी विवेकानंद जी के बारे में लिखा है कि वो 31 बीमारियों से ग्रसित थे और उन्हें मधुमेह भी था। इसी वजह से 39 साल की अल्पायु में उनकी मौत हो गयी और interesting बात यह है कि यहाँ लेखक के माध्यम से यह कहने की कोशिश की गयी है कि वो इस बात में विश्वास रखते थे कि 'शरीर बीमारियों का मंदिर है'। थोडा सा दिमाग पर जोर डालिए,आप पायेंगे कि यह 'शक्तिमान' द्वारा कहे गए वाक्य 'Body is temple' का ठीक उलटा है! क्या स्वस्थ तन-मन के धनी (जैसा कि उनके चित्रों और विचारों से साफ़ झलकता है) विवेकानंद जी ऐसा कह सकते हैं?
दूसरी बात जो बिलकुल भी गले नहीं उतरती वो यह है कि 'उन्होंने कहा था कि गीता पढने से अच्छा फुटबाल खेलना है'। क्या एक ऐसा महापुरुष जिसके गुरु श्रीराम-कृष्ण मिशन के संस्थापक थे (यानी कि जो राम और कृष्ण दोनों की शिक्षाओं में विश्वास रखते थे), ऐसी बात कहने की सोच भी सकता है ?
ऐसी ही कुछ और विरोधाभाषी वाक्य आपको मिल सकती है अगर आप विवेकानंद जी की शिक्षाओं की आज उपलब्ध किताबों और दस साल पहले की प्रकाशित पुस्तकों के बीच तुलना करेंगे।
दरअसल यह हमारे नीति-नियन्ताओं द्वारा फैलाया जा रहा भ्रम है जो हमारे देश के युवाओं को राह से भटकाने के लिए किया जा रहा है। क्योंकि वो इन युवाओं की जागरूकता और सक्रियता से डर गए हैं और इसलिए हर उस चीज को destroy कर देना चाहते हैं जो इन युवाओं को प्रेरित करती हो !
........................................! Jai Hind !........................................
जी हाँ आपने बिलकुल ठीक सुना , आजकल news में भड़काऊपन और महापुरुषों के विचारों में confusive & abeted thoughts की मिलावट चल रही है।
हमारे पास का mixer-grinder फलों और दूध को या फिर अलग-अलग चीजों को पीसकर मसाला बनाने के ही काम आती है, मगर हमारे नीति-नियन्ताओं के पास ऐसा mixer होता है कि ये किसी भी चीज में किसी भी चीज को इस तरह मिला सकता है कि बड़े से बड़ा जाँचकर्ता भी इस मिलावट को न पकड़ सके।
वैसे तो ये सब कई दिनों से चल रहा है, मगर मैं आज की ताज़ा खबर के बारे में ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा-
अमर-उजाला के पेज-13 पर स्वामी विवेकानंद जी के बारे में लिखा है कि वो 31 बीमारियों से ग्रसित थे और उन्हें मधुमेह भी था। इसी वजह से 39 साल की अल्पायु में उनकी मौत हो गयी और interesting बात यह है कि यहाँ लेखक के माध्यम से यह कहने की कोशिश की गयी है कि वो इस बात में विश्वास रखते थे कि 'शरीर बीमारियों का मंदिर है'। थोडा सा दिमाग पर जोर डालिए,आप पायेंगे कि यह 'शक्तिमान' द्वारा कहे गए वाक्य 'Body is temple' का ठीक उलटा है! क्या स्वस्थ तन-मन के धनी (जैसा कि उनके चित्रों और विचारों से साफ़ झलकता है) विवेकानंद जी ऐसा कह सकते हैं?
दूसरी बात जो बिलकुल भी गले नहीं उतरती वो यह है कि 'उन्होंने कहा था कि गीता पढने से अच्छा फुटबाल खेलना है'। क्या एक ऐसा महापुरुष जिसके गुरु श्रीराम-कृष्ण मिशन के संस्थापक थे (यानी कि जो राम और कृष्ण दोनों की शिक्षाओं में विश्वास रखते थे), ऐसी बात कहने की सोच भी सकता है ?
ऐसी ही कुछ और विरोधाभाषी वाक्य आपको मिल सकती है अगर आप विवेकानंद जी की शिक्षाओं की आज उपलब्ध किताबों और दस साल पहले की प्रकाशित पुस्तकों के बीच तुलना करेंगे।
दरअसल यह हमारे नीति-नियन्ताओं द्वारा फैलाया जा रहा भ्रम है जो हमारे देश के युवाओं को राह से भटकाने के लिए किया जा रहा है। क्योंकि वो इन युवाओं की जागरूकता और सक्रियता से डर गए हैं और इसलिए हर उस चीज को destroy कर देना चाहते हैं जो इन युवाओं को प्रेरित करती हो !
........................................! Jai Hind !........................................
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