74th day :: truth of 'truth'

हम जो भी ज्ञान प्राप्त करते हैं वो अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा सुन ,देख, महसूस करके , स्पर्श करके आदि के द्वारा ही करते हैं। इसलिए हमारे लिए truth इन्हीं ज्ञानेन्द्रियों पर आधारित होती है। 
    किसी वस्तु, स्थान, व्यक्ति, आदि के बारे में हमारी 'सूचना' में हमारी कितनी ज्ञानेन्द्रियाँ , कितनी बार शामिल है वो निर्धारित करती है कि वो सूचना कितनी true है। 
  i.e. मेरा नाम ओम है।मैं एक लड़का हूँ लेकिन अगर कोई मुझसे कहे कि मेरे  जैसे body  या figure वाले को लड़का नहीं लड़की कहते हैं तो मैं उनका solid uppose करूंगा है और कहूँगा  की   क्या वो पागल हो गया है ?
  लेकिन पूरा शहर यही बात कहे तो ?
तो फिर मैं एक बार सोचूंगा कि मैं कहीं गलत तो नहीं ?
 लेकिन अगर पूरा देश यही बात  बोले तो ? 
साथ ही प्रधानमंत्री जी टीवी पर स्पष्टीकरण देते हैं कि अभी तक लड़की को लड़के और लड़के को  लड़की की तरह  संबोधित किया जा रहा था ।तब मेरे पास खुद को लडकी कहलवाने के सिवाय कोई ऑप्शन नहीं  बचेगा।
* Truth जितने आयामों से और जितनी बार हमारे सामने आता है उतना ही सच्चा लगता है।
* Truth जितने नए आयामों से सामने आता है उतना ही सच्चा लगता है।

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