65th day ::: जीत-हार का क्रम :: कितनी सच्चाई कितना भ्रम

कुछ दुर्भाग्यशाली लोगों (जिनके guardians लापरवाह होते हैं ) को छोड़कर बाकी सभी लोगों को जन्म से ही जीतना सिखाया जाता है। ऐसा करना पुरी तरह गलत भी नहीं है लेकिन हम जीतना सिखाते हुए ये सिखाना भूल जाते हैं कि जीत किस कीमत पर पाना चाहिए । हमें ये ध्यान देना चाहिए कि कहीं हम जीत से मिलाने वाले पैसे या ख़ुशी या सम्मान आदि से ज्यादा जीत हासिल करने के लिए गँवा तो नहीं रहे ?
     आजकल दुनिया में ऐसी ही आपाधापी मची है। सबको जीत चाहिए चाहे उसके लिए कुछ भी कीमत चुकानी पड़े। ऐसे लोग ही अधिकतर कुछ चालाक लोगो का काम या तो प्यादा बनकर जीतने के लिए करते है या फिर किंग बनकर न हारने के लिए ही करते हैं।
कीमत चुकाने के उदहारण के तौर पर देखें तो एक छोटी सी नौकरी पाने के लिए लोग 5-10 लाख तक रिश्वत देने को तैयार रहते हैं। चाहे उतनी रकम वसूलने में जिंदगी ही क्यों न गुजर जाए।
दूसरे उदाहरण के तौर पर हम देख सकते है कि जीत और पैसे के लिए लोग कितना नीचे गिर जाते हैं।  यहाँ तक कि लोग murder , molestation  और rape से भी बाज नहीं आते।
हमें किसी को जीतना सिखाने से पहले यह सिखाना चाहिए कि उस जीत को पाने के लिए किस हद तक जाना चाहिए। मैंने देखा है कि जिस हद तक हम molesters आदि का विरोध करते है , उससे कहीं ज्यादा हद तक molesters आदि अपने बॉस से इनाम पाने के लिए ऐसा करने को तैयार रहते हैं।
         इसलिए हमें अपने बच्चों को जीतना सिखाते हुए ये जरूर सिखाना चाहिए कि जीत केवल तभी तक जरूरी है जब तक कि जीतना सही हो वरना गलत होने पर हारना , जीतने से अच्छा है।  यहाँ तक कि भले ही एक छोटे से बच्चे से हारना पड़े।

........jai hind......jai bhaarat.................! 

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