48th day :: Corruption : it's just not because they take,it's because we give
हम सभी corruption से परेशान हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता है जब हम इसके लिए system को न कोसते हों। लेकिन क्या कभी हम सोचते हैं कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?
जवाब है कि इसके लिए कहीं न कहीं हम सभी जिम्मेदार हैं। हम सभी राशन (या गैस आदि ) के लाइन में लगे होते हैं तो हम सभी चाहते हैं कि पैसे देकर , पहचान दिखाकर या दबंगई करके राशन हमें पहले मिल जाए। इधर हमने लाइन तोड़कर राशन लिया और उधर corruption को पैदा कर दिया। लेकिन हमें दिक्कत तब होती है जब कोई और (जो हमारी नक़ल करके ही corruption सीखता है) लाइन तोड़कर हमसे पहले राशन ले लेता है।
एक और अच्छा उदाहरण देता हुँ ::-
हममें से अधिकतर लोग अपने गन्तव्य तक जल्दी पहुंचने के लिए ट्रैफिक सिग्नल तोड़ देते हैं, जिससे ट्रैफिक जाम लग जाता है। ज्यादा से ज्यादा हम ट्रैफिक पुलिस को रिश्वत देकर बच जाते हैं, लेकिन हमें दिक्कत तब होती है जब हमारी ही नक़ल करके कोई और ट्रैफिक सिग्नल तोड़ कर जाम लगा देता है और उसकी वजह से हमें घंटों देर हो जाती है । यही ट्रैफिक जाम हमारे system का corruption है।
economics का एक basic rule है कि माँग की वजह से ही किसी वस्तु या सेवा की आपूर्ति होती है मांग व आपूर्ति के अनुपात से ही किसी वस्तु या सेवा की कीमत तय होती है। इसलिए corruption को ख़त्म करने के लिए हमें सबसे पहले corruption की माँग को ख़त्म करना होगा फिर corruption की आपूर्ति को।
आसान शब्दों में कहें तो गांधीजी के असहयोग आन्दोलन की तरह हमें यह दृढ़ निश्चय करना होगा कि चाहे हमें कोई नौकरी मिले या न मिले या हमारा कोई काम हो या न हो, हम रिश्वत देकर अपना काम नहीं करवाएंगे।
प्रैक्टिकली भले ही ऐसा लगे कि सिर्फ एक व्यक्ति के रिश्वत न देने पर रिश्वतखोर रिश्वत माँगना (और न देने पर परेशान करना ) तो नहीं छोड़ देंगे , लेकिन समाज ऐसे ही एक-एक व्यक्ति से बनता है और जिस दिन समाज के एक लाख लोगों ने भी ये दृढ निश्चय कर लिया , उसी दिन इस देश से corruption ख़त्म हो जायेगा।
वैसे भी रिश्वतखोरी की लत हममें से ही कुछ पैसे वालों द्वारा अपना काम निकलवाने के लिए लगाया गया है , तो यह लत छूटेगी भी हममें से अधिकतर लोगों के रिश्वत देने से मना करने से।
.....................................JAI HIND - JAI BHARAT...............................................
जवाब है कि इसके लिए कहीं न कहीं हम सभी जिम्मेदार हैं। हम सभी राशन (या गैस आदि ) के लाइन में लगे होते हैं तो हम सभी चाहते हैं कि पैसे देकर , पहचान दिखाकर या दबंगई करके राशन हमें पहले मिल जाए। इधर हमने लाइन तोड़कर राशन लिया और उधर corruption को पैदा कर दिया। लेकिन हमें दिक्कत तब होती है जब कोई और (जो हमारी नक़ल करके ही corruption सीखता है) लाइन तोड़कर हमसे पहले राशन ले लेता है।
एक और अच्छा उदाहरण देता हुँ ::-
हममें से अधिकतर लोग अपने गन्तव्य तक जल्दी पहुंचने के लिए ट्रैफिक सिग्नल तोड़ देते हैं, जिससे ट्रैफिक जाम लग जाता है। ज्यादा से ज्यादा हम ट्रैफिक पुलिस को रिश्वत देकर बच जाते हैं, लेकिन हमें दिक्कत तब होती है जब हमारी ही नक़ल करके कोई और ट्रैफिक सिग्नल तोड़ कर जाम लगा देता है और उसकी वजह से हमें घंटों देर हो जाती है । यही ट्रैफिक जाम हमारे system का corruption है।
economics का एक basic rule है कि माँग की वजह से ही किसी वस्तु या सेवा की आपूर्ति होती है मांग व आपूर्ति के अनुपात से ही किसी वस्तु या सेवा की कीमत तय होती है। इसलिए corruption को ख़त्म करने के लिए हमें सबसे पहले corruption की माँग को ख़त्म करना होगा फिर corruption की आपूर्ति को।
आसान शब्दों में कहें तो गांधीजी के असहयोग आन्दोलन की तरह हमें यह दृढ़ निश्चय करना होगा कि चाहे हमें कोई नौकरी मिले या न मिले या हमारा कोई काम हो या न हो, हम रिश्वत देकर अपना काम नहीं करवाएंगे।
प्रैक्टिकली भले ही ऐसा लगे कि सिर्फ एक व्यक्ति के रिश्वत न देने पर रिश्वतखोर रिश्वत माँगना (और न देने पर परेशान करना ) तो नहीं छोड़ देंगे , लेकिन समाज ऐसे ही एक-एक व्यक्ति से बनता है और जिस दिन समाज के एक लाख लोगों ने भी ये दृढ निश्चय कर लिया , उसी दिन इस देश से corruption ख़त्म हो जायेगा।
वैसे भी रिश्वतखोरी की लत हममें से ही कुछ पैसे वालों द्वारा अपना काम निकलवाने के लिए लगाया गया है , तो यह लत छूटेगी भी हममें से अधिकतर लोगों के रिश्वत देने से मना करने से।
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