13th Day :: A story close 2 d truth
`एक बार 1 छोटा लड़का ,1 काला गरीब आदमी ,1 गोरा धनी आदमी और 1 माँसाहारी आदमी समुद्र के किनारे बैठे थे .उस समय तक कोई विशेष धर्म नहीं था .लोग बस ये जानते थे कि हर जीव को और हर वस्तु को ,जिसे वो देख सकते हैं या महसूस कर सकते हैं , उन सबको किसी एक ही शक्ति ने बनाया है जिसे वो भगवान् कहते हैं .
बातों ही बातों में उनमे ये होड़ लग गयी कि कौन भगवान को ज्यादा जानता है और कौन भगवान का ज्यादा प्रिय
है . उस समय उनकी स्थिति 'पांच अंधों ने हाथी को देखा' जैसी ही थी और उन्ही अंधों की तरह उन्होंने भगवान को जानने का प्रयास किया .
बहुत दिमाग लगाने के बाद छोटे बच्चे ने सोचा कि उसका सबसे प्रिय खेलने वाला गुड्डा है , तो भगवान् ज़रूर उसके गुड्डे जैसा ही दिखाई देता होगा .सो उसने भगवान् के रूप में एक गुड्डे की मूर्ति रेत से बनाई . फिर अपने भगवान् का प्रिय बनने के लिए उन्हें खुश करने की सोची . उसके दिमाग में एक बात आई कि उसे टॉफी ,बिस्किट
बहुत पसंद है इसलिए भगवान को भी ये ज़रूर पसंद होगी . इसलिए उसने उस गुड्डे की मूर्ति को टॉफी और बिस्किट चढ़ा दिए .
दूसरे काले आदमी ने सोचा कि भगवान् जरूर उसके ही जैसा कोई काला आदमी होगा तो उसने रेत से एक मूर्ति बनाई और उसे काले रंग से पेंट कर दिया और उन्हे खुश करने के लिए अपने घर से कुछ अमरुद ले आया जिसके
लिए उसे पैसे खर्च नहीं करने थे और वो उसे प्रिय भी थे .
अब तीसरे धनी गोरे आदमी ने एक कलाकार को बुलाकर एक सुन्दर मूर्ति बनवाई और उसे हीरे-मोती के आभूषनो से सजाया . फिर भोग के रूप में 36 किस्म के पकवान बनवाकर चढ़ाया .
इसी तरह माँसाहारी व्यक्ति ने हाथ में तलवार लिए एक मूर्ति बनवाई और उन्हें खुश करने के लिए एक जानवर की बलि दी .
इसके बाद सभी अपने -अपने तर्कों द्वारा अपने द्वारा बनाई गई मूर्ति को ही सबसे सही और खुद को भगवान् का सबसे प्रिय बताने लगे . विवाद बढ़ने पर उन्होंने तय किया कि वे किसी विद्वान से ही पूछ लेंगे कि भगवान् किसकी मूर्ति की तरह दिखते हैं . इसलिए तीनों एक पण्डित के पास गए . (उस समय तक 'पण्डित ' शब्द किसी जाति के लिए नही बल्कि विद्वानों के लिए प्रयोग किया जाता था ). पण्डित ने सबकी बात सुनने के बाद उनसे कहा कि भगवान् तो सबके हैं और हर रूप में है . इसलिए तुम सभी की बनाई मूर्तियाँ उस एक भगवान् की ही मूर्तियाँ हैं . अतः तुम सभी समान रूप से सही हो !
तभी से भगवान् के अलग-अलग रूप बन गए और उनको ख़ुश करने के लिए चढ़ाया जाने वाला चढ़ावा और किये जाने वाले अन्य कर्मों ने 'कर्मकाण्ड' का रूप ले लिया ......!!!
बातों ही बातों में उनमे ये होड़ लग गयी कि कौन भगवान को ज्यादा जानता है और कौन भगवान का ज्यादा प्रिय
है . उस समय उनकी स्थिति 'पांच अंधों ने हाथी को देखा' जैसी ही थी और उन्ही अंधों की तरह उन्होंने भगवान को जानने का प्रयास किया .
बहुत दिमाग लगाने के बाद छोटे बच्चे ने सोचा कि उसका सबसे प्रिय खेलने वाला गुड्डा है , तो भगवान् ज़रूर उसके गुड्डे जैसा ही दिखाई देता होगा .सो उसने भगवान् के रूप में एक गुड्डे की मूर्ति रेत से बनाई . फिर अपने भगवान् का प्रिय बनने के लिए उन्हें खुश करने की सोची . उसके दिमाग में एक बात आई कि उसे टॉफी ,बिस्किट
बहुत पसंद है इसलिए भगवान को भी ये ज़रूर पसंद होगी . इसलिए उसने उस गुड्डे की मूर्ति को टॉफी और बिस्किट चढ़ा दिए .
दूसरे काले आदमी ने सोचा कि भगवान् जरूर उसके ही जैसा कोई काला आदमी होगा तो उसने रेत से एक मूर्ति बनाई और उसे काले रंग से पेंट कर दिया और उन्हे खुश करने के लिए अपने घर से कुछ अमरुद ले आया जिसके
लिए उसे पैसे खर्च नहीं करने थे और वो उसे प्रिय भी थे .
अब तीसरे धनी गोरे आदमी ने एक कलाकार को बुलाकर एक सुन्दर मूर्ति बनवाई और उसे हीरे-मोती के आभूषनो से सजाया . फिर भोग के रूप में 36 किस्म के पकवान बनवाकर चढ़ाया .
इसी तरह माँसाहारी व्यक्ति ने हाथ में तलवार लिए एक मूर्ति बनवाई और उन्हें खुश करने के लिए एक जानवर की बलि दी .
इसके बाद सभी अपने -अपने तर्कों द्वारा अपने द्वारा बनाई गई मूर्ति को ही सबसे सही और खुद को भगवान् का सबसे प्रिय बताने लगे . विवाद बढ़ने पर उन्होंने तय किया कि वे किसी विद्वान से ही पूछ लेंगे कि भगवान् किसकी मूर्ति की तरह दिखते हैं . इसलिए तीनों एक पण्डित के पास गए . (उस समय तक 'पण्डित ' शब्द किसी जाति के लिए नही बल्कि विद्वानों के लिए प्रयोग किया जाता था ). पण्डित ने सबकी बात सुनने के बाद उनसे कहा कि भगवान् तो सबके हैं और हर रूप में है . इसलिए तुम सभी की बनाई मूर्तियाँ उस एक भगवान् की ही मूर्तियाँ हैं . अतः तुम सभी समान रूप से सही हो !
तभी से भगवान् के अलग-अलग रूप बन गए और उनको ख़ुश करने के लिए चढ़ाया जाने वाला चढ़ावा और किये जाने वाले अन्य कर्मों ने 'कर्मकाण्ड' का रूप ले लिया ......!!!
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